गर्मियों की एक शाम, छोटे से कस्बे अलवर की गलियों में चहल-पहल थी। नीम के पेड़ की छाँव में बैठी आराधना अपनी साड़ी के पल्लू से माथे का पसीना पोंछ रही थी। उसकी आँखें सामने वाले घर की बालकनी पर टिकी थीं, जहाँ एक युवक बैठा गिटार पर धीमे स्वर में कोई गीत गुनगुना रहा था। वह नया-नया यहाँ आया था—नाम था वैभव। शहर से आए इस लड़के के बारे में कस्बे में चर्चाएँ थीं: "पढ़ाई छोड़कर संगीत में दिल लगा लिया," "अकेला रहता है," "बहुत शांत है..."
आराधना ने उसे पहली बार तब देखा था जब वह स्थानीय पुस्तकालय में गीतों की एक पुरानी किताब ढूँढ रहा था। उस दिन, उसकी गहरी आवाज़ ने उसका ध्यान खींचा था: "क्या आपको यहाँ रवींद्रनाथ टैगोर की 'गीतांजलि' मिलेगी?" वह सवाल उसके दिल में उतर गया।
एक दिन बारिश में, आराधना की साइकिल का पहिया टूट गया। वैभव ने उसे अपनी छतरी दे दी और बिना कुछ कहे खुद भीगता हुआ चला गया। उसकी यह बेमौसम मदद आराधना के मन में एक अजीब सी गुदगुदी छोड़ गई।
धीरे-धीरे, दोनों की मुलाकातें बढ़ने लगीं। वैभव उसे संगीत सिखाता, और आराधना उसे कस्बे की कहानियाँ सुनाती। एक शाम, जब सूरज ढल रहा था, वैभव ने अपने गिटार पर वह गीत बजाया जो उसने आराधना के लिए लिखा था:
"तुम्हारी चुप्पी में भी ज़िंदगी का सुर मिलता है...
तुम्हारी आँखों ने मेरे बिखरे सपनों को सजा दिया है..."
आराधना की आँखें नम हो गईं। उसने पूछा, "तुम इतने खूबसूरत शब्द कैसे लिख लेते हो?"
वैभव ने मुस्कुराते हुए कहा, "क्योंकि तुम्हारे बिना ये शब्द अधूरे हैं।"
उनकी यह प्रेमकथा चुपचाप फलने-फूलने लगी। पर एक दिन, वैभव को पता चला कि उसे विदेश में संगीत की पढ़ाई का मौका मिला है। आराधना के सामने सवाल था: क्या वह उसे जाने देगी? उस रात, उसने वैभव के हाथ में एक डायरी थमाई, जिसमें उनकी हर याद को शब्द दिए गए थे।
"जाओ, पर वादा करो कि तुम्हारा संगीत हमेशा मेरी याद दिलाएगा," आराधना ने कहा।
वैभव चला गया, पर उनकी मोहब्बत नहीं गई। हर साल दीवाली पर, वह आराधना के लिए एक नया गीत भेजता। और आराधना उन गीतों को अपनी डायरी में सजाती रही... जब तक एक दिन वैभव उसकी दहलीज़ पर खड़ा नहीं हो गया, अपने गिटार के साथ, यह कहते हुए:
"मेरी हर धुन तुम्हारे बिना अधूरी है। अब मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।"
यह कहानी प्रेम की कोमलता, त्याग, और विश्वास पर केंद्रित है। यदि आप चाहें, तो इसमें और विवरण या पात्रों के विकास के साथ विस्तार कर सकते हैं! 😊
1. मानसून के फुसफुसाहट बारिश की पहली बूँदें जब धरती से टकराईं, प्रिया सड़क पर तेजी से चल रही थी, उसकी दुपट्टा कंधों से चिपकी हुई थी। अचानक हुई मुंबई की मानसून बारिश ने उसे अप्रस्तुत कर दिया था। मोड़ पर मुड़ते ही वह एक चौड़े सीने से टकरा गई। "संभल कर," एक जानी-पहचानी आवाज़ हँसी। उसका दिल धक से रह गया। रोहन। उसके गर्म हाथों ने उसे संभाला, जबकि बारिश उसकी काले पलकों से टपक रही थी। महीनों से वे इस आकर्षण के आसपास घूम रहे थे—कॉलेज में एक-दूसरे को देखते रहना, नोट पास करते समय उंगलियों का अनजाने में छू जाना। अब, एक बंद चाय की दुकान के छज्जे के नीचे अकेले में, उनके बीच की हवा में बिजली-सी कौंध गई। "तुम काँप रही हो," रोहन ने धीरे से कहा, अपनी डेनिम जैकेट उतारकर उसे पहना दी। उसकी उंगलियाँ प्रिया के गर्दन के उस हिस्से को छू गईं जो खुला हुआ था, और प्रिया की साँस रुक-सी गई। कल रात मीरा की शादी में पीते हुए वाइन का आत्मविश्वास शायद अभी तक बाकी था, जिसने उसे रोहन की आँखों में देखने का साहस दिया। रोहन की आँखें गहरा गईं। धीरे से, उसे पीछे हटने का मौका देते हुए, उसने उसके गाल...
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