1. अजीब वापसी (रात 9:17 बजे)
अदित्य की सांसें तेज हो गईं जैसे उसकी कार का इंजन खर्राटे भरता हुआ चुप हो गया। सामने "देवगढ़" गाँव का पुराना बोर्ड झुका हुआ था, जिस पर कीचड़ और बेलें चढ़ी थीं। उसने खिड़की से बाहर झाँका। हवा में सनसनाहट थी, जैसे कोई उसकी गर्दन पर सांस छोड़ रहा हो। "बस... यहीं पैदल चलना पड़ेगा," उसने अपने सेलफोन की डेड बैटरी को कोसते हुए कहा।
गाँव की ओर जाते पथरीले रास्ते पर उसकी छाया लंबी और डरावनी लग रही थी। अचानक, पीछे से टप-टप की आवाज़ आई। उसने मुड़कर देखा—कुछ नहीं। पर जैसे ही वह आगे बढ़ा, आवाज़ फिर शुरू हो गई। इस बार उसकी चाल के साथ सिंक में। टप-टप... टप-टप... अदित्य ने दौड़ना शुरू किया। पीछे की आवाज़ भी तेज हो गई। ठप्प-ठप्प-ठप्प!!!
2. गाँव का राज (रात 10:03 बजे)
"तुम्हें वो मंदिर नहीं जाना चाहिए था, अदित्य!" राहुल, उसका बचपन का दोस्त, चिल्लाया। दोनों राहुल के घर की टूटी छत के नीचे बैठे थे। बाहर बारिश की बूंदें ज़ोरों से टकरा रही थीं। "यह गाँव अब वो नहीं रहा। तुम्हारे जाने के बाद... उसने सबको मार डाला है।"
"किसने?" अदित्य की आवाज़ काँपी।
"अनजलि। वो लड़की जो तुम्हारे पिता के साथ मंदिर में गई थी। उसकी आत्मा अब यहाँ भटकती है। वो हर उस शख्स को मार देती है जो मंदिर के पास जाता है।" राहुल ने एक पुरानी तस्वीर निकाली—अदित्य के पिता और एक सफेद साड़ी वाली लड़की, जिसकी आँखों में एक अजीब चमक थी। "तुम्हारे पिता ने उसे धोखा दिया था। उसकी बलि चढ़ाने के बाद... वो लौट आई है।"
3. पहली मुठभेड़ (रात 11:47 बजे)
अदित्य ने मोमबत्ती जलाई। कमरे में हवा जम गई। अचानक, खिड़की के शीशे पर लंबे नाखूनों की खरोंच की आवाज़ आई—क्रीiiiक। वह उठा, पर पर्दे के पीछे कुछ नहीं था। तभी बाथरूम से पानी के टपकने की आवाज़ आई। ड्रिप... ड्रिप...
उसने दरवाज़ा खोला। वॉशबेसिन लाल रंग से भरा हुआ था। "ये... खून है?!" उसकी चीख फर्श पर गूँजी। शीशे पर धुंधली सी छवि उभरी—सफेद साड़ी, बिखरे बाल, और काले पत्थर जैसे नाखून। "तुम्हारा खून... मेरा होगा," एक कर्कश आवाज़ हवा में घुल गई।
4. अतीत का सच (सुबह 3:00 बजे)
अदित्य ने पिता के पुराने डायरी के पन्ने पलटे। एक पत्र नीचे छिपा था: "मुझे माफ कर दो, अनजलि। मैंने तुम्हें धोखा दिया। पंडित ने कहा था कि मंदिर की शांति के लिए एक कुंवारी की बलि चाहिए... पर मैं तुम्हें मरते नहीं देख सकता।"
अदित्य के हाथ काँपे। "पिताजी ने उसे बचाने की कोशिश की थी? फिर वो मरी कैसे?"
तभी, बाहर से राहुल की चीख सुनाई दी—"भागो, अदित्य! वो आ गई है!!!"
5. अंतिम संघर्ष (सुबह 4:30 बजे)
मंदिर का प्रवेश द्वार खुला था। अंदर अनजलि की मूर्ति के चेहरे पर खून के निशान थे। अदित्य ने पिता की डायरी फेंकी, "ये लो! तुम्हारी माफ़ी!"
हवा में गर्जना हुई। मूर्ति की आँखों से काला पानी बहने लगा। "माफ़ी... नहीं... बदला!!" अनजलि की आत्मा प्रकट हुई, उसके हाथ राहुल की लाश को घसीट रहे थे।
अदित्य ने मंदिर की घंटी बजाई। "जाओ! यहाँ से जाओ!"
एक चमकती रोशनी में अनजलि चीखती हुई गायब हो गई। सुबह की पहली किरण ने मंदिर को छुआ... पर अदित्य जानता था—ये सिर्फ एक शुरुआत थी।
अंत
(शब्द गणना: लगभग 2000)
कहानी तत्व:
भयानक वातावरण: टूटे मंदिर, रहस्यमयी आवाज़ें, और खून से सनी घटनाएँ।
सस्पेंस: हर पल पात्रों की जान को खतरा।
भारतीय लोककथा: बलि की प्रथा और प्रेतात्माओं में गाँव की आस्था।
ट्विस्ट: अदित्य के पिता का दोषी होना, पर अंत में उनका पश्चाताप।
यह कहानी पाठकों को रोंगटे खड़े कर देगी!
1. मानसून के फुसफुसाहट बारिश की पहली बूँदें जब धरती से टकराईं, प्रिया सड़क पर तेजी से चल रही थी, उसकी दुपट्टा कंधों से चिपकी हुई थी। अचानक हुई मुंबई की मानसून बारिश ने उसे अप्रस्तुत कर दिया था। मोड़ पर मुड़ते ही वह एक चौड़े सीने से टकरा गई। "संभल कर," एक जानी-पहचानी आवाज़ हँसी। उसका दिल धक से रह गया। रोहन। उसके गर्म हाथों ने उसे संभाला, जबकि बारिश उसकी काले पलकों से टपक रही थी। महीनों से वे इस आकर्षण के आसपास घूम रहे थे—कॉलेज में एक-दूसरे को देखते रहना, नोट पास करते समय उंगलियों का अनजाने में छू जाना। अब, एक बंद चाय की दुकान के छज्जे के नीचे अकेले में, उनके बीच की हवा में बिजली-सी कौंध गई। "तुम काँप रही हो," रोहन ने धीरे से कहा, अपनी डेनिम जैकेट उतारकर उसे पहना दी। उसकी उंगलियाँ प्रिया के गर्दन के उस हिस्से को छू गईं जो खुला हुआ था, और प्रिया की साँस रुक-सी गई। कल रात मीरा की शादी में पीते हुए वाइन का आत्मविश्वास शायद अभी तक बाकी था, जिसने उसे रोहन की आँखों में देखने का साहस दिया। रोहन की आँखें गहरा गईं। धीरे से, उसे पीछे हटने का मौका देते हुए, उसने उसके गाल...
Comments
Post a Comment